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Unraveling the Roots: Why Menstrual Myths Persist in India

Unraveling the Roots: Why Menstrual Myths Persist in India

हमारे देश में मासिक धर्म के बारे में इतने सारे मिथक और वर्जनाएं क्यों हैं?

  • मासिक धर्म (Periods) एक सामान्य जैविक प्रक्रिया है।
  • लेकिन भारत सहित कई देशों में इसे लेकर गलत धारणाएं बनी हुई हैं।
  • इन मिथकों का कारण मुख्य रूप से अज्ञानता, संस्कार, और खुलकर बात ना करना है।

मासिक धर्म क्या है?

  • यह महिलाओं के शरीर की एक सामान्य और प्राकृतिक प्रक्रिया है।
  • हर महीने, जब कोई महिला गर्भवती नहीं होती, तो उसके गर्भाशय की परत टूटकर योनि से बाहर निकलती है।
  • यह लड़कियों में यौवनारंभ (लगभग 10-15 साल की उम्र) से शुरू होता है और रजोनिवृत्ति (लगभग 45-55 साल की उम्र) तक चलता है।
  • यह प्रजनन क्षमता का संकेत है।

समस्या क्या है?

  • एक प्राकृतिक प्रक्रिया होने के बावजूद, हमारे समाज में इसके बारे में बहुत से मिथक और वर्जनाएँ (पाबंदियाँ) हैं।
  • इनकी वजह से महिलाओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

मासिक धर्म को लेकर इतने मिथक और वर्जनाएं क्यों हैं?

1. अज्ञानता और शिक्षा की कमी:

  • बहुत से लोगों को मासिक धर्म के वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी नहीं है।
    • सही जानकारी न होने से डर और गलत धारणाएँ जन्म लेती हैं।
    • स्कूलों और घरों में इस विषय पर खुलकर बात नहीं की जाती।

2. धार्मिक और सांस्कृतिक विश्वास:

  • कुछ धर्मों और पुरानी परंपराओं में मासिक धर्म को ‘अपवित्र’ या ‘अशुद्ध’ माना जाता है।
    • इसकी वजह से पूजा-पाठ, मंदिर जाने या धार्मिक आयोजनों में शामिल होने पर पाबंदी लगाई जाती है।
    • ये विश्वास पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे हैं।

3. सामाजिक कलंक (Stigma):

  • मासिक धर्म के बारे में बात करना एक ‘वर्जित’ विषय माना जाता है।
    • लड़कियों और महिलाओं को शर्मिंदा महसूस कराया जाता है।
    • पुरुषों को इसके बारे में जानकारी नहीं होती और वे अक्सर इसे मजाक का विषय बनाते हैं।

4. पितृसत्तात्मक समाज (Patriarchal Society):

  • ऐसे समाज में महिलाओं की भूमिका को सीमित किया जाता है।
    • मासिक धर्म से जुड़ी पाबंदियाँ महिलाओं को कुछ कार्यों से दूर रखने या उन्हें कमजोर महसूस कराने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं।

5. स्वच्छता से जुड़ी गलतफहमियाँ:

  • कई बार लोग मासिक धर्म के दौरान होने वाले रक्तस्राव को ‘गंदा’ या ‘अस्वच्छ’ मानते हैं।
    • यह धारणा गलत है; यह शरीर से अपशिष्ट नहीं, बल्कि प्राकृतिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
    • हालांकि, स्वच्छता का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है।

मासिक धर्म से जुड़े आम मिथक (गलत धारणाएँ) क्या है?

  1. “मासिक धर्म के दौरान महिलाएँ अपवित्र होती हैं।”
  2. सच्चाई: यह एक प्राकृतिक शारीरिक क्रिया है, इसका पवित्रता से कोई लेना-देना नहीं है।
  3. “मासिक धर्म में रसोई में खाना नहीं बनाना चाहिए या अचार को छूना नहीं चाहिए, वरना वह खराब हो जाएगा।”
  4. सच्चाई: इसका विज्ञान से कोई संबंध नहीं है। भोजन या अचार खराब होने का कारण स्वच्छता की कमी या अनुचित भंडारण हो सकता है, न कि मासिक धर्म।
  5. “मंदिर या धार्मिक स्थलों में नहीं जाना चाहिए।”
  6. सच्चाई: यह पूरी तरह से एक सांस्कृतिक और धार्मिक धारणा है, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। ईश्वर की भक्ति का शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया से कोई लेना-देना नहीं है।
  7. “इस दौरान बाल नहीं धोने चाहिए/नहाना नहीं चाहिए।”
  8. सच्चाई: मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता बनाए रखना और नहाना बहुत ज़रूरी है ताकि संक्रमण से बचा जा सके और खुद को ताज़ा महसूस किया जा सके।
  9. “मासिक धर्म के दौरान व्यायाम नहीं करना चाहिए।”
  10. सच्चाई: हल्का व्यायाम दर्द और ऐंठन को कम करने में मदद कर सकता है। ज़रूरत के हिसाब से शारीरिक गतिविधि करनी चाहिए।
  11. “मासिक धर्म में अलग कमरे में सोना चाहिए या अलग बिस्तर पर सोना चाहिए।”
  12. सच्चाई: यह एक पाबंदी है जिसका उद्देश्य महिला को अलग-थलग करना है। इसका कोई वैज्ञानिक या स्वास्थ्य संबंधी कारण नहीं है।

इन वर्जनाओं का महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है?

  • मानसिक और भावनात्मक प्रभाव:
  • शर्मिंदगी और हीन भावना महसूस करना।
  • तनाव, चिंता और आत्मविश्वास की कमी।
  • खुद को दोषी या ‘गंदा’ महसूस करना।
  • सामाजिक प्रभाव:
  • सामाजिक गतिविधियों से दूर रहना।
  • स्कूल या कॉलेज न जा पाना (ख़ासकर ग्रामीण इलाकों में)।
  • भेदभाव का सामना करना।
  • स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव:
  • सही स्वच्छता उत्पादों तक पहुंच न होना (जैसे सैनिटरी पैड)।
  • खुले में शौच करना या असुरक्षित सामग्री का उपयोग करना, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ता है।
  • मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं (जैसे दर्द) पर खुलकर बात न कर पाना और इलाज न मिल पाना।

समाधान: क्या कर सकते हैं हम?

1. शिक्षा और जागरूकता:

  • स्कूलों के पाठ्यक्रम में मासिक धर्म की सही जानकारी शामिल करें।
  • घरों में माता-पिता अपनी बेटियों और बेटों से इस पर खुलकर बात करें।
  • जागरूकता अभियान चलाए जाएँ जो वैज्ञानिक तथ्यों को उजागर करें।

2. खुलकर बात करना:

  • मासिक धर्म को एक सामान्य विषय के रूप में स्वीकार करें।
  • शर्मिंदगी और झिझक को दूर करें।
  • पुरुषों को भी इस बारे में शिक्षित करें।

3. स्वच्छता सुविधाओं में सुधार:

  • स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक स्थानों पर साफ और उपयोग करने योग्य शौचालय हों।
  • स्वच्छता उत्पादों (सैनिटरी पैड) की आसान उपलब्धता और किफायती दाम पर बिक्री।

4. रूढ़िवादिता को चुनौती देना:

  • गलत परंपराओं और मिथकों पर सवाल उठाएं।
  • भेदभाव का विरोध करें।
  • मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को सामान्य रूप से रहने दें।

5. सरकारी नीतियाँ और सहायता:

  • मासिक धर्म स्वच्छता को बढ़ावा देने वाली योजनाएं।
  • ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों में सैनिटरी पैड का वितरण।

निष्कर्ष

  • मासिक धर्म एक सामान्य और प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया है।
  • मिथक और वर्जनाएँ हमारे समाज की अज्ञानता और पुरानी सोच का परिणाम हैं।
  • इनसे बाहर निकलने के लिए शिक्षा, जागरूकता और खुली बातचीत सबसे ज़रूरी है।
  • जब हम मासिक धर्म को सामान्य रूप से स्वीकार करेंगे, तभी महिलाएँ सम्मान और गरिमा के साथ जीवन जी पाएंगी।
  • आइए, एक ऐसे समाज का निर्माण करें जहाँ मासिक धर्म कोई कलंक नहीं, बल्कि जीवन का एक हिस्सा हो।

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